कुर्बानी के बकरे
कुर्बानी के बकरे या लाल किताब पद्धति का एक अनूठा सूत्र है इसका अर्थ यह है कि जब कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह से पीड़ित होता है तो वह अपना कष्ट दूसरे ग्रह के फल के अशुभ हो जाने से दिखा जिस ग्रह के द्वारा वह अपना अशुभ फल प्रकट करेगा या जिस ग्रह से संबंधित करेगा उस ग्रह को कुर्बानी का बकरा कहा जाता है | उदाहरण के लिए:-- जिस कुंडली में शनि, सूर्य से पीड़ित हो, तो उस कुंडली में शुक्र के फल अशुभ मिलेंगे जातक की पत्नी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा या उसके साथ संबंध अच्छे नहीं रहेंगे इसलिए शुक्र को यहां कुर्बानी का बकरा कहा|
उदाहरण:- सूर्य भाव नंबर 6 और शनि भाग नंबर 12 में हो तो जातक की पत्नी और पत्नी मरती है|
इसी प्रकार अन्य प्लेनेट ने भी अपने बचाव के लिए किसी ना किसी ग्रह का सहारा लिया हुआ है जैसे:-
बुध:- बुद्ध ने अपने बचाव के लिए शुक्र अपने दोस्त शुक्र पर ही अपनी मुसीबतें डाला करता है|
मंगल:- मंगल अशुभ होने पर अपना फल केतु के द्वारा प्रकट करता है| यानी हमारा पुत्र, कुत्ता, मामा, मौसा, साला, हमारी पीठ, हमारे कान, हमारे पैर, पुरुष का लिंग, पेशाब की नाली, सब केतु की संबंधित आशिया है|
शुक्र:- शुक्र पीड़ित होने पर अपना अशुभ फल चंद्र के द्वारा प्रकट करता है|
उदाहरण के लिए:- अगर चंद्र और शुक्र बिल- मुकाबिल अथवा टकराव पर हो तो जातक की माता की नजर कमजोर होगी या माता का स्वास्थ्य ठीक न होगा या दोनों के विचार नहीं मिलते हैं|
बृहस्पति:- बृहस्पति भी अशुभ होने पर अपना अशुभ फल केतु के द्वारा प्रकट करता है क्योंकि केतु को बृहस्पति का चेला कहा जाता है|
उदाहरण के लिए:- माना कि बृहस्पति हाउस नंबर 5 में है, यहां बृहस्पति अशुभ फल दे रहा है तो केतु किसी भी भाव में हो तो संतान जो कि 5 में भाग की कारक कही जाती है पर गलत असर पड़ेगा
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